कैटलाग

एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर के कैटलॉग 
प्रदर्शनी आयोजन और उसकी जरुरी आवश्यकताएं जिनमें कैटलॉग और फ्रेमिंग पर विशेष बल दिया जाता रहा है।  उद्घाटन और निमंत्रण की औचारिकता भी उसी  का हिस्सा हैं। 
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .

(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाया हैं जिसे हमेशा वे इसे एक स्मृति की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके. विशेष रूप से जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?
(-डॉ.लाल रत्नाकर)
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एम.ए.चित्रकला चतुर्थ सेमेस्टर 

2018-2019
इस बार कुछ ऐसा हुआ की परीक्षा को किसी तरह से सम्पन्न कराना था कोर्स की अपनी दिक्कतें थीं चुनाव का भी वर्ष था साथ ही यह मेरे अंतिम वर्ष के परीक्षा की जिम्मेदारी का भी।
इसीलिए प्रभावित हो जाती है प्रतिबद्धता  
प्रतिबद्धता के मायने तब समझ में आते हैं जब आपके नियंत्रण की शक्ति कमजोर पड़ने लगती है या आप किसी ऐसे व्यक्ति पर जिसकी विश्वसनीयता सदा से संदेह के घेरे में रहती रही होती है पर भरोसा करते हैं।  तो परिणाम भी भयावह हो जाते हैं कुछ इसी तरह की लापरवाही यहाँ पर हुई है जो अन्य वर्षों की अपेक्षा बहुत ही स्तरहीन हो गया है।  फिर भी -------------?


एम्.ए. 2019 के विद्यार्थी 



















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एम.ए.चित्रकला चतुर्थ सेमेस्टर 

2017-2018
प्रतिबद्धता...........                  

“कलाकार देता नहीं युग धारा का साथ 
बहती गंगा में नहीं धोता है वह हाथ”
(पं.द्वारिका प्रसाद मिश्र)
             
                चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास में चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के उदय के साथ से ही अध्ययन और अध्यापन में सम्मिलित रहा है. संयोग ही है कि पाठ्यक्रम के परिवर्तन के समय मुझे भी “बोर्ड आफ स्टडी के सदस्य” के रूप में वर्तमान पाठ्यक्रम को सुगठित करने का अवसर मिला. यहीं से सेमेस्टर पद्धति के अनुसार चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आरम्भ हुआ था जिसे 2011के बैच से क्रियान्वित किया गया । जिसमें दो वर्ष के एम.ए. चित्रकला के पाठ्यक्रम को चार सेमेस्टर में विभाजित कर प्रत्येक सेमेस्टर को पांच पांच प्रश्न पत्रों के साथ संचालित किया गया है, जिसमें दो प्रश्न पत्र सिद्धांत के हैं और तीन प्रश्न पत्र प्रयोगात्मक अध्ययन के हैं.

                 कला अध्ययन के विविध रूपों को समेटे हुए यह पाठ्यक्रम जिस अत्यंत महत्वपूर्ण प्रदर्शनी आयोजन के हिस्से को यदि इसमें शरीक न किया गया होता तो यह विषय ज्ञान के स्तर पर अधूरा ही रह जाता । इस हिस्से को चतुर्थ सेमेस्टर में प्रदर्शनी आयोजन के विभिन्न स्तर पर की जाने वाली तैयारियों के साथ कलाकृतियों को कैसे प्रदर्शित किया जाय इसकी समुचित जानकारी कराने हेतु शरीक किया गया है.

                आज के बदलते हुए शैक्षणिक वातावरण में अनेक परिवर्तन अग्रगामी हैं जिसमें हमारा विद्यार्थी केवल सिद्धांत से रूबरू तो हो पर यदि उसे व्यवहारिक ज्ञान न हो तो शिक्षा के महत्त्वपूर्ण पहलू से वह अनभिज्ञ ही रह जाता है, जब से इस प्रश्नपत्र को उसके पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है उससे अपने कौशल के प्रदर्शन की उसकी प्रतिबद्धता निश्चित तौर पर बढ़ी है.
                   
               महाविद्यालयी परिवेश में यद्यपि यह शिक्षा पद्धति काफी जटिल एवं कठिन है, क्योंकि ललित कलाओं के अध्यापन एवं अध्ययन में समय बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ ‘रियाज एवं ‘निपुणता’ अति आवश्यक पहलू है, फिर भी चित्रकला विभाग के दो साथियों के सेवानिवृत्ति से यह भार शेष दो के कन्धों पर ही है, समय और शैक्षणिक पाठ्यक्रम का दबाव को सहेजना कितना जटिल है, उसका असर विद्यार्थियों के ऊपर भी बढ़ा है, जिसके लिए सारा कार्य समय से संपन्न हो पाना भी जटिल होता जा रहा है, फिर भी निष्ठा, लगन और प्रतिबद्धता से विद्यार्थियों ने जितना किया है, वह आपके सम्मुख है.                
                  इस प्रश्नपत्र के संयोजन और उसके गुण धर्म से अवगत कराते हुए निहायत ग्रामीण अंचल से आये चित्रकला विभाग,एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद के विद्यार्थियों ने जितना प्रयास किया है, उनके इस लगन और प्रयास से उनका भविष्य हमेशा प्रभावशाली शिक्षण के प्रति संवेदनशील, मौलिकता और प्रतिबद्धता की अभिव्यक्ति का हिमायती रहेगा. मुझे यह उम्मीद है की वह इस तरह के कठिन परिश्रम से ओत-प्रोत आदर्श को जीवन में सिद्धांत के रूप में ग्रहण कर मौलिकता के प्रति सदा सजग और प्रतिबद्ध रहेंगे और समाज में अपने इस गुण का प्रसार करेंगे. 
इसी प्रतिबद्धता की प्रत्याशा में.

पर्यवेक्षकः
-डॉ.लाल रत्नाकर 
अध्यक्ष 
चित्रकला विभाग 
एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद 

9810566808, artistratnakar@gmail.com  
















































............................................................
एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2017 
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .
(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाया हैं जिसे हमेशा वे इसे एक स्मृति की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?
(-डॉ.लाल रत्नाकर)
निरन्तर ...........
“कलाकार देता नहीं युग धारा का साथ 
बहती गंगा में नहीं धोता है वह हाथ”
(पं.द्वारिका प्रसाद मिश्र)

किसी भी विषय को ले लिया जाय तो उसकी गुणवत्ता के अपने मायने हैं। वैसे ही कलाओं की शिक्षा और उसकी गुणवत्ता उसके अभ्यास पर निर्भर है। समकालीन कला अध्ययन का सन्दर्भ जिन मानदण्डों पर आधरित है वह बहुत ही गहरे बहस का विषय है। जबकि सारी शिक्षा का नियंत्रण मात्र प्रशासनिक हाथों और उनके अहलकारों के अधीन होकर रह गया है। उसकी गुणवत्ता के मानदण्ड बदले हैं जिसका हम शिक्षक आंख मूंदकर अनुकरण कर रहे हैं। जिसके प्रभाव के इतने खंाचे हैं जिनका अनुपालन करना कराना कितना जटिल है उसपर अलग से बात करेंगे।
आजकल पाठ्यक्रम ऐसा रखिए जिससे काम आसानी से निकल जाए। यहां आश्चर्यजनक यथार्थ से रूबरू होना पड़ा है इस कला शिक्षा के जिम्मेदार शिक्षक होने का अरमान रखने के कारण। यहां उस यथार्थ की वानगी - स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के कला शिक्षण की आवश्यक सुविधाओं पर नजर डालें तो उनका कोई मानदण्ड लिखित रूप में कहीं उपलब्ध नहीं है, पर प्रयोगात्मक कक्षाओं की सामान्य व्यवस्था अनेक उन्नत कला महाविद्यालयों तक में उपलब्ध नहीं है जो अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है।
यदि इनके विस्तार की बात की जाए तो उत्तरोत्तर उन प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा मिल रहा है जिसमें कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। इनके स्पष्ट कारण जो दिखाई दे रहे हैं उनमें कला की शिक्षण संस्थाएं, उपयुक्त संसाधन और निपुड़ ज्ञानदाताओं की अनुपलब्धता भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनसे भी महत्वपूर्ण यह है कि कलाकार बनने के लिए शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थी जो हैं वह या तो डिग्री हासिल करने के लिए कुछेक अच्छे अंक पाने के लिए किसी न किसी प्रकार अपने कोर्स पूरे करते हैं। जबकि वे सब कलाकार की बजाय नौकरी के लिए यह विषय लेते हैं। इसके विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि जितने कलाकार इन क्षेत्रों में दिखाई देने चाहिए थे वास्तविकता उनसे परे हैं। जो इस प्रकार के कलाकार हैं वह सतह पर कितने नजर आते हैं उन परिक्षेत्रों में जहां पर कला के ऐसे संस्थान हैं। अनेक कला महाविद्यालयों में इन स्थितियों से भिन्नता दिखाई तो देती है।
यही कारण है कि जिस स्थान पर कला को होना चाहिए था आज वहां नहीं है। इन्ही कारणों से आज की कला शिक्षा में जिन मूल्यों की प्रतिस्थापना होनी चाहिए थी कहीं न कहीं उनका संकट उपस्थित है। पर नित नए संस्थान जन्म ले रहे हैं जहां केवल और केवल यह हो रहा है कि शिक्षण प्रशिक्षण की कला का विकास तो हो रहा होगा पर कला के शिक्षण प्रशिक्षण की कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। यही कारण है कि सारी प्रक्रियाएं ठहरी हुयी सी प्रतीत हो रही हैं। हो सकता है कल कोई कला जिज्ञासु आए और इनको झकझोरने की कोशिस करे। फिर इनकी नींद टूटे और कला सृजन की संभावनाओं की भी इन्हे भी चिन्ता हो जो केवल और केवल नौकरियों वाली कला शिक्षा, उपाधियां उपलब्धियों की जगह ले ली हैं ।
चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास में चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के उदय के साथ से ही यहाँ अध्ययन और अध्यापन में सम्मिलित रहा है. संयोग ही है कि पाठ्यक्रम के परिवर्तन के समय मुझे भी “बोर्ड आफ स्टडी के सदस्य” के रूप में वर्तमान पाठ्यक्रम को सुगठित करने का अवसर मिला. यहीं से सेमेस्टर पद्धति से चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आरम्भ होना था जिसे 2011 के बैच से प्रारम्भ किया गया है, जिसमें दो वर्ष के इस कोर्स को चार सेमेस्टर में विभाजित कर प्रत्येक सेमेस्टर को पांच पांच प्रश्न पत्रों के साथ सम्बद्ध किया गया है, जिसमें दो प्रश्न पत्र सिद्धांत के हैं और तीन प्रश्न पत्र प्रयोगात्मक अध्ययन के हैं.
कला अध्ययन के विविध रूपों को समेटे हुए यह पाठ्यक्रम जिस अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से को यदि इसमें शरीक न किया गया होता तो यह विषय ज्ञान के स्तर पर अधूरा ही रह जाता जिस हिस्से को चतुर्थ सेमेस्टर में प्रदर्शनी आयोजन के नाम से शरीक किया गया है.

आज के बदलते हुए शैक्षणिक वातावरण में अनेक परिवर्तन अग्रगामी हैं जिसमें हमारा विद्यार्थी केवल सिद्धांत से रूबरू तो हो पर यदि उसे व्यवहारिक ज्ञान न हो तो शिक्षा के महत्त्वपूर्ण पहलू से वह अनभिग्य ही रह जाता है, जब से इस प्रश्नपत्र को उसके पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है उससे अपने कौशल के प्रदर्शन की उसकी प्रतिबद्धता निश्चित तौर पर बढ़ी है. महाविद्यालयी परिवेश में यद्यपि यह शिक्षा पद्धति काफी जटिल एवं कठिन है, क्योंकि ललित कलाओं के अध्यापन एवं अध्ययन में समय बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ ‘रियाज़’ एवं ‘निपुणता’ अति आवश्यक पहलू है, फिर भी चित्रकला विभाग के दो साथियों के सेवानिवृत्ति से यह भार शेष दो के कन्धों पर ही है, समय और शैक्षणिक पाठ्यक्रम का दबाव को सहेजना कितना जटिल है, उसका असर विद्यार्थियों के ऊपर भी बढ़ा है, जिसके लिए सारा कार्य समय से संपन्न हो पाना भी जटिल होता जा रहा है, फिर भी निष्ठा और लगन से विद्यार्थियों ने जितना किया है, वह आपके सम्मुख है.
समय समय पर देश के जाने माने कलाकारों, साहित्यकर्मियों, मीडियाकर्मियों एवं प्रशासनिक अधिकारियों ने हमारे विद्यार्थियों का मनोबल बढ़ाया है। साथ ही हमारे विद्यार्थियों ने अपने योगदान से विभाग, महाविद्यालय, जनपद, वि.वि., प्रदेश और देश का मान बढ़ाया है। जबकि यह विभाग मेरे विभागाध्यक्ष के दायित्व संभालने के समय से दो प्राध्यापकों के सेवा निवृत्ति होने के कारण अपने एक सहयोगी एवं विभाग तीन कर्मचारियों के साथ विषय की गुणवत्ता बनाये रखने का निरन्तर प्रयास जारी है। जिसमें वर्तमान एवं समय समय पर आते जाते रहे प्राचार्यगणों का सहयोग के साथ सचिव प्रबन्धतंत्र एवं महाविद्यालय परिवार का संरक्षकत्व इस विभाग को अपनी दुआएं देता ही रहता है।
इस प्रश्नपत्र के संयोजन और उसके गुण धर्म से अवगत कराते हुए निहायत ग्रामीण अंचल से आये चित्रकला विभाग,एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद के विद्यार्थियों ने जितना प्रयास किया है, उनके इस लगन और प्रयास से उनका भविष्य हमेशा प्रभावशाली शिक्षण के प्रति समवेदनशील मौलिकता की अभिव्यक्ति का हिमायती रहेगा. मुझे यह उम्मीद है की वह इस तरह के कठिन परिश्रम से ओत-प्रोत आदर्श को जीवन में सिद्धांत के रूप में ग्रहण कर मौलिकता के प्रति सदा सजग रहेंगे और समाज में अपने इस गुण का प्रसार करेंगे. 
इसी प्रत्याशा में.......!

डॉ.लाल रत्नाकर 
अध्यक्ष 
चित्रकला विभाग 

एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद 

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एम.ए.चित्रकला चतुर्थ सेमेस्टर 
2016-2017

















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अभिव्यक्ति...........

“कलाकार देता नहीं युग धारा का साथ 
बहती गंगा में नहीं धोता है वह हाथ”
(पं.द्वारिका प्रसाद मिश्र) 

स्नातकोत्तर स्तर के कला शिक्षण के निहितार्थ है समाज में कला को महत्वपूर्ण बनाना। जब हमारे समाज में बाजार का परिष्कृत रूप व्यापक तौर पर हमारी कलात्मकता पर हमलावर हो तो उससे बचना आसान नहीं है। केवल अपने दायित्व निर्वहन में सुविधाओं का समावेश करते जाना जहां सामंजस्य बैठाता हो और ऐसे कलाकार पैदा करता हो जो समाज में कलास्वरूप तक न जानता हो । यही कारण है कि जो उस खांचे में फीट नहीं हो सकता वह नई व्यवस्था के उपयुक्त ही नहीं है। 

आजकल पाठ्यक्रम ऐसा रखिए जिससे काम आसानी से निकल जाए। यहां आश्चर्यजनक यथार्थ से रूबरू होना पड़ा है इस कला शिक्षा के जिम्मेदार शिक्षक होने का अरमान रखने के कारण। यहां उस यथार्थ की वानगी - स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के कला शिक्षण की आवश्यक सुविधाओं पर नजर डालें तो उनका कोई मानदण्ड लिखित रूप में कहीं उपलब्ध नहीं है, पर प्रयोगात्मक कक्षाओं की सामान्य व्यवस्था अनेक उन्नत कला महाविद्यालयों तक में उपलब्ध नहीं है जो अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है।     
      
              यदि इनके विस्तार की बात की जाए तो उत्तरोत्तर उन प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा मिल रहा है जिसमें कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। इनके स्पष्ट कारण जो दिखाई दे रहे हैं उनमें कला की शिक्षण संस्थाएं, उपयुक्त संसाधन और निपुड़ ज्ञानदाताओं की अनुपलब्धता भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनसे भी महत्वपूर्ण यह है कि कलाकार बनने के लिए शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थी जो हैं वह या तो डिग्री हासिल करने के लिए कुछेक अच्छे अंक पाने के लिए किसी न किसी प्रकार अपने कोर्स पूरे करते हैं। जबकि वे सब कलाकार की बजाय नौकरी के लिए यह विषय लेते हैं। इसके विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि जितने कलाकार इन क्षेत्रों में दिखाई देने चाहिए थे वास्तविकता उनसे परे हैं। जो इस प्रकार के कलाकार हैं वह सतह पर कितने नजर आते हैं उन परिक्षेत्रों में जहां पर कला के ऐसे संस्थान हैं। अनेक कला महाविद्यालयों में इन स्थितियों से भिन्नता दिखाई तो देती है। 

              यही कारण है कि जिस स्थान पर कला को होना चाहिए था आज वहां नहीं है। इन्ही कारणों से आज की कला शिक्षा में जिन मूल्यों की प्रतिस्थापना होनी चाहिए थी कहीं न कहीं उनका संकट उपस्थित है। पर नित नए संस्थान जन्म ले रहे हैं जहां केवल और केवल यह हो रहा है कि शिक्षण प्रशिक्षण की कला का विकास तो हो रहा होगा पर कला के शिक्षण प्रशिक्षण की कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। यही कारण है कि सारी प्रक्रियाएं ठहरी हुयी सी प्रतीत हो रही हैं। हो सकता है कल कोई कला जिज्ञासु आए और इनको झकझोरने की कोशिस करे। फिर इनकी नींद टूटे और कला सृजन की संभावनाओं की भी इन्हे भी चिन्ता हो जो केवल और केवल नौकरियों वाली कला शिक्षा, उपाधियां उपलब्धियों की जगह ले ली हैं ।

                चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास में चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के उदय के साथ से ही यहाँ अध्ययन और अध्यापन में सम्मिलित रहा है. संयोग ही है कि पाठ्यक्रम के परिवर्तन के समय मुझे भी “बोर्ड आफ स्टडी के सदस्य” के रूप में वर्तमान पाठ्यक्रम को सुगठित करने का अवसर मिला. यहीं से सेमेस्टर पद्धति से चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आरम्भ होना था जिसे २०११ के बैच से प्रारम्भ किया गया है, जिसमें दो वर्ष के इस कोर्स को चार सेमेस्टर में विभाजित कर प्रत्येक सेमेस्टर को पांच पांच प्रश्न पत्रों के साथ सम्बद्ध किया गया है, जिसमें दो प्रश्न पत्र सिद्धांत के हैं और तीन प्रश्न पत्र प्रयोगात्मक अध्ययन के हैं. कला अध्ययन के विविध रूपों को समेटे हुए यह पाठ्यक्रम जिस अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से को यदि इसमें शरीक न किया गया होता तो यह विषय ज्ञान के स्तर पर अधूरा ही रह जाता जिस हिस्से को चतुर्थ सेमेस्टर में प्रदर्शनी आयोजन के नाम से शरीक किया गया है.

                     आज के बदलते हुए शैक्षणिक वातावरण में अनेक परिवर्तन अग्रगामी हैं जिसमें हमारा विद्यार्थी केवल सिद्धांत से रूबरू तो हो पर यदि उसे व्यवहारिक ज्ञान न हो तो शिक्षा के महत्त्वपूर्ण पहलू से वह अनभिग्य ही रह जाता है, जब से इस प्रश्नपत्र को उसके पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है उससे अपने कौशल के प्रदर्शन की उसकी प्रतिबद्धता निश्चित तौर पर बढ़ी है.

महाविद्यालयी परिवेश में यद्यपि यह शिक्षा पद्धति काफी जटिल एवं कठिन है, क्योंकि ललित कलाओं के अध्यापन एवं अध्ययन में समय बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ ‘रियाज़’ एवं ‘निपुणता’ अति आवश्यक पहलू है, फिर भी चित्रकला विभाग के दो साथियों के सेवानिवृत्ति से यह भार शेष दो के कन्धों पर ही है, समय और शैक्षणिक पाठ्यक्रम का दबाव को सहेजना कितना जटिल है, उसका असर विद्यार्थियों के ऊपर भी बढ़ा है, जिसके लिए सारा कार्य समय से संपन्न हो पाना भी जटिल होता जा रहा है, फिर भी निष्ठा और लगन से विद्यार्थियों ने जितना किया है, वह आपके सम्मुख है. 

              इस प्रश्नपत्र के संयोजन और उसके गुण धर्म से अवगत कराते हुए निहायत ग्रामीण अंचल से आये चित्रकला विभाग, एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद के विद्यार्थियों ने जितना प्रयास किया है, उनके इस लगन और प्रयास से उनका भविष्य हमेशा प्रभावशाली शिक्षण के प्रति समवेदनशील मौलिकता की अभिव्यक्ति का हिमायती रहेगा. मुझे यह उम्मीद है की वह इस तरह के कठिन परिश्रम से ओत-प्रोत आदर्श को जीवन में सिद्धांत के रूप में ग्रहण कर मौलिकता के प्रति सदा सजग रहेंगे और समाज में अपने इस गुण का प्रसार करेंगे. इसी प्रत्याशा में................................

पर्यवेक्षकः

-डॉ.लाल रत्नाकर 
अध्यक्ष 
चित्रकला विभाग 
एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद   

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एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2016 
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .
(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाए हैं जिसे हमेशा वे इसे कैलेंडर की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?-डॉ.लाल रत्नाकर)
















एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2015 
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .
(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाया हैं जिसे हमेशा वे इसे एक स्मृति की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके. विशेष रूप से जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?
(-डॉ.लाल रत्नाकर)



























































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एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2014
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .

(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाया हैं जिसे हमेशा वे इसे एक स्मृति की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके. विशेष रूप से जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?
(-डॉ.लाल रत्नाकर)

समग्र...........

“कलाकार देता नहीं युग धारा का साथ 
बहती गंगा में नहीं धोता है वह हाथ”
(पं.द्वारिका प्रसाद मिश्र) 

आजकल पाठ्यक्रम ऐसा रखिए जिससे काम आसानी से निकल जाए। यहां आश्चर्यजनक यथार्थ से रूबरू होना पड़ा है इस कला शिक्षा के जिम्मेदार शिक्षक होने का अरमान रखने के कारण। यहां उस यथार्थ की वानगी - स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के कला शिक्षण की आवश्यक सुविधाओं पर नजर डालें तो उनका कोई मानदण्ड लिखित रूप में कहीं उपलब्ध नहीं है, पर प्रयोगात्मक कक्षाओं की सामान्य व्यवस्था अनेक उन्नत कला महाविद्यालयों तक में उपलब्ध नहीं है जो अपने आप में एक बड़ी विडम्बना है।    
       
              यदि इनके विस्तार की बात की जाए तो उत्तरोत्तर उन प्रवृत्तियों को ही बढ़ावा मिल रहा है जिसमें कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। इनके स्पष्ट कारण जो दिखाई दे रहे हैं उनमें कला की शिक्षण संस्थाएं, उपयुक्त संसाधन और निपुड़ ज्ञानदाताओं की अनुपलब्धता भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इनसे भी महत्वपूर्ण यह है कि कलाकार बनने के लिए शिक्षा ग्रहण कर रहे शिक्षार्थी जो हैं वह या तो डिग्री हासिल करने के लिए कुछेक अच्छे अंक पाने के लिए किसी न किसी प्रकार अपने कोर्स पूरे करते हैं। जबकि वे सब कलाकार की बजाय नौकरी के लिए यह विषय लेते हैं। इसके विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि जितने कलाकार इन क्षेत्रों में दिखाई देने चाहिए थे वास्तविकता उनसे परे हैं। जो इस प्रकार के कलाकार हैं वह सतह पर कितने नजर आते हैं उन परिक्षेत्रों में जहां पर कला के ऐसे संस्थान हैं। अनेक कला महाविद्यालयों में इन स्थितियों से भिन्नता दिखाई तो देती है। 

              यही कारण है कि जिस स्थान पर कला को होना चाहिए था आज वहां नहीं है। इन्ही कारणों से आज की कला शिक्षा में जिन मूल्यों की प्रतिस्थापना होनी चाहिए थी कहीं न कहीं उनका संकट उपस्थित है। पर नित नए संस्थान जन्म ले रहे हैं जहां केवल और केवल यह हो रहा है कि शिक्षण प्रशिक्षण की कला का विकास तो हो रहा होगा पर कला के शिक्षण प्रशिक्षण की कला मूल्यों एवं उनकी मौलिकताओं का अभाव है। यही कारण है कि सारी प्रक्रियाएं ठहरी हुयी सी प्रतीत हो रही हैं। हो सकता है कल कोई कला जिज्ञासु आए और इनको झकझोरने की कोशिस करे। फिर इनकी नींद टूटे और कला सृजन की संभावनाओं की भी इन्हे भी चिन्ता हो जो केवल और केवल नौकरियों वाली कला शिक्षा, उपाधियां उपलब्धियों की जगह ले ली हैं ।

                चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ के इतिहास में चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम विश्वविद्यालय के उदय के साथ से ही यहाँ अध्ययन और अध्यापन में सम्मिलित रहा है. संयोग ही है कि पाठ्यक्रम के परिवर्तन के समय मुझे भी “बोर्ड आफ स्टडी के सदस्य” के रूप में वर्तमान पाठ्यक्रम को सुगठित करने का अवसर मिला. यहीं से सेमेस्टर पद्धति से चित्रकला विषय का स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम आरम्भ होना था जिसे २०११ के बैच से प्रारम्भ किया गया है, जिसमें दो वर्ष के इस कोर्स को चार सेमेस्टर में विभाजित कर प्रत्येक सेमेस्टर को पांच पांच प्रश्न पत्रों के साथ सम्बद्ध किया गया है, जिसमें दो प्रश्न पत्र सिद्धांत के हैं और तीन प्रश्न पत्र प्रयोगात्मक अध्ययन के हैं. कला अध्ययन के विविध रूपों को समेटे हुए यह पाठ्यक्रम जिस अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्से को यदि इसमें शरीक न किया गया होता तो यह विषय ज्ञान के स्तर पर अधूरा ही रह जाता जिस हिस्से को चतुर्थ सेमेस्टर में प्रदर्शनी आयोजन के नाम से शरीक किया गया है.

                     आज के बदलते हुए शैक्षणिक वातावरण में अनेक परिवर्तन अग्रगामी हैं जिसमें हमारा विद्यार्थी केवल सिद्धांत से रूबरू तो हो पर यदि उसे व्यवहारिक ज्ञान न हो तो शिक्षा के महत्त्वपूर्ण पहलू से वह अनभिग्य ही रह जाता है, जब से इस प्रश्नपत्र को उसके पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है उससे अपने कौशल के प्रदर्शन की उसकी प्रतिबद्धता निश्चित तौर पर बढ़ी है.

महाविद्यालयी परिवेश में यद्यपि यह शिक्षा पद्धति काफी जटिल एवं कठिन है, क्योंकि ललित कलाओं के अध्यापन एवं अध्ययन में समय बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है जहाँ ‘रियाज़’ एवं ‘निपुणता’ अति आवश्यक पहलू है, फिर भी चित्रकला विभाग के दो साथियों के सेवानिवृत्ति से यह भार शेष दो के कन्धों पर ही है, समय और शैक्षणिक पाठ्यक्रम का दबाव को सहेजना कितना जटिल है, उसका असर विद्यार्थियों के ऊपर भी बढ़ा है, जिसके लिए सारा कार्य समय से संपन्न हो पाना भी जटिल होता जा रहा है, फिर भी निष्ठा और लगन से विद्यार्थियों ने जितना किया है, वह आपके सम्मुख है. 

इस प्रश्नपत्र के संयोजन और उसके गुण धर्म से अवगत कराते हुए निहायत ग्रामीण अंचल से आये चित्रकला विभाग,एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद के विद्यार्थियों ने जितना प्रयास किया है, उनके इस लगन और प्रयास से उनका भविष्य हमेशा प्रभावशाली शिक्षण के प्रति समवेदनशील मौलिकता की अभिव्यक्ति का हिमायती रहेगा. मुझे यह उम्मीद है की वह इस तरह के कठिन परिश्रम से ओत-प्रोत आदर्श को जीवन में सिद्धांत के रूप में ग्रहण कर मौलिकता के प्रति सदा सजग रहेंगे और समाज में अपने इस गुण का प्रसार करेंगे. इसी प्रत्याशा में.

पर्यवेक्षकः
-डॉ.लाल रत्नाकर 
अध्यक्ष 
चित्रकला विभाग,
एम.एम.एच. कालेज गाजियाबाद 







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एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2013 
के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .
(हर वर्ष विद्यार्थियों के कैटलॉग अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब होते हैं इसी कड़ी में इन्होंने इसबार इस तरह का कैटलॉग बनाया हैं जिसे हमेशा वे इसे एक स्मृति की तरह इस्तेमाल कर सकें क्योंकि प्रदर्शनी आयोजन और उसके समस्त तैयारियों को मैं अपने निर्देशन में रखता हूँ जिससे मेरा विद्यार्थी मेरे उन अनुभवों से लाभान्वित हो सके. विशेष रूप से जिसे मैं पाठ्यक्रम बनाते समय विशेष आग्रह और जोर देकर लगवाया था ! अन्यथा कलाओं के प्रदर्शन की जो दुर्गति अक्सर दिखाई देती है उसका उदाहरण आप कहीं भी देख सकते है ?
(-डॉ.लाल रत्नाकर)





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एम . ए .चतुर्थ सेमेस्टर -2012 

के विद्यार्थियों के कैटलाग की छवियाँ यहाँ दी जा रही हैं .

मुझे किन परिस्थितियों में विभाग दिया गया था इसमें काम करना बहुत मुश्किल था बल्कि यूं समझिए की उस समय के प्राचार्य की कोशिश थी कि वह हमें कितना उत्पीड़ित करें। कहानी बहुत लंबी है उसको लिखना यहां ठीक नहीं है लेकिन इतना जान लीजिए कि कला शिक्षा के लिए व्यक्ति को अच्छा वातावरण और अच्छी परिस्थितियों की बहुत जरूरत होती है. और यह सब कैसे खराब हो उसके लिए विभाग से लेकर ऊपर तक लोगों की नियत साफ नहीं थी।

फिर भी मैंने पूरी कोशिश की कि किस तरह विभाग में बच्चों के यानी विद्यार्थियों के हित को कैसे बढ़ाया जाए, उनकी मौलिकता के साथ पाठ्यक्रम को सम्बद्ध किया जाय. मैंने इसके लिए पूरी कोशिश की हालांकि यह शुरुआती बैच है जिसे बहुत ही संकटों का सामना भी करना पड़ा है. क्योंकि जो कुछ विभाग में घटता है उसकी खबर तो विद्यार्थियों को हो ही जाती है।

इस बार के विद्यार्थियों ने इंडिविजुअल कैटलॉग बनाए थे। और यही वक्त था जब विश्वविद्यालय ने नयी परीक्षा प्रणाली और नया पाठ्यक्रम और सेमेस्टर सिस्टम लागू किया था।संयोग ही था की मैं भी उस कमिटी का सदस्य था.

इसीलिए प्रभावित हो जाती है प्रतिबद्धता  

प्रतिबद्धता के मायने तब समझ में आते हैं जब आपके नियंत्रण की शक्ति कमजोर पड़ने लगती है या आप किसी ऐसे व्यक्ति पर जिसकी विश्वसनीयता सदा से संदेह के घेरे में रहती रही होती है पर भरोसा करते हैं।  तो परिणाम भी भयावह हो जाते हैं कुछ इसी तरह की लापरवाही यहाँ पर हुई है जो अन्य वर्षों की अपेक्षा बहुत ही स्तरहीन हो गया है।  

फिर भी -------------?






































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